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भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवरात्रि पर करें ये उपाय, दूर होंगी परेशानियां शिव पूजा से सम्बंधित कुछ विशेष नियम

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवरात्रि पर करें ये उपाय, दूर होंगी परेशानियां शिव पूजा से सम्बंधित कुछ विशेष नियम

शिव पूजा से सम्बंधित पहला नियम

भगवान् शिव को अर्पित करने वाले जल को वस्त्र से छान लें।

बिना छने जल के बजाय छना हुआ जल अधिक फलदायी है।

शिव पूजा से सम्बंधित दूसरा नियम

शिव पूजन से पहले स्नान आवश्यक है। वेद स्मृति में स्नान भी सात प्रकार के बताए गए हैं।

 मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्नि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान तथा मानसिक स्नान जो

क्रमशः मंत्र, मिट्टी, भस्म, गौखुर की धूल, सूर्य किरणों में, वर्षाजल, गंगाजल तथा आत्मचिंतन द्वारा किए जाते हैं।

अगर रोग आदि संकट ग्रस्त हों तो केवल भस्म स्नान या मंत्रस्नान जरूर करें।

तीसरा नियम

विद्वान पुरुषको चाहिये कि वह भस्म का त्रिपुंड लगाकर, रुद्राक्ष की माला लेकर

तथा बिल्वपत्रका संग्रह करके ही भगवान् शंकर की पूजा करे, इनके बिना नहीं | मुनिवरो ! शिवपूजन आरम्भ करते समय यदि भस्म न मिले तो मिट्टीसे भी ललाट में त्रिपुंड अवश्य कर लेना चाहिये |

साधू-संतों, तपस्वियों और पंडितों के माथे पर चन्दन या भस्म से बना तीन रेखाएं कोई साधारण रेखाएं नहीं होती है।

ललाट पर बना तीन रेखाओं को त्रिपुण्ड कहते है। हथेली पर चन्दन या भस्म को रखकर तीन उंगुलियों की मदद से

माथे पर त्रिपुण्ड को लगाई जाती है। इन तीन रेखाओं में 27 देवताओं का वास होता है। यानी प्रत्येक रेखाओं में 9 देवताओं का वास होता हैं।

जानिए त्रिपुण्ड से जुड़ी कुछ अनजानी और रोचक तथ्यों को…

त्रिपुण्ड के देवताओं का नाम

ललाट पर लगा त्रिपुंड की पहली रेखा में नौ देवताओं का नाम इस प्रकार है।

अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रिया शक्ति, प्रात:स्वन, महादेव।

इसी प्रकार त्रिपुंड की दूसरी रेखा में, ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा, महेश्वर जी का नाम आता है.

अंत में त्रिपुंड की तीसरी रेखा में मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीयसवन, शिव जी वास करते हैं।

त्रिपुण्ड धारण करने के तरीके

यह विचार मन में न रखें कि त्रिपुण्ड केवल माथे पर ही लगाया जाता है। त्रिपुण्ड हमारे शरीर के कुल 32 अंगों पर लगाया जाता है।

इन अंगों में मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, ह्रदय, दोनों पाश्र्व भाग, नाभि, दोनों अण्डकोष,

दोनों अरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर शामिल हैं। इनमें अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु, दस दिक्प्रदेश, दस दिक्पाल और आठ वसुओं वास करते हैं। सभी अंगों का नाम लेकर इनके उचित स्थानों में ही त्रिपुण्ड लगना उचित होता है।

सभी अंगों पर अलग-अलग देवताओं का वास होता है। जैसे- मस्तक में शिव, केश में चंद्रमा,

दोनों कानों में रुद्र और ब्रह्मा, मुख में गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, ह्रदय में शंभू, नाभि में प्रजापति, दोनों उरुओं में नाग और नागकन्याएं, दोनों घुटनों में ऋषिकन्याएं, दोनों पैरों में समुद्र और विशाल पुष्ठभाग में सभी तीर्थ देवता रूप में रहते हैं।

वैज्ञानिक की नजर में त्रिपुण्ड

विज्ञान ने त्रिपुण्ड को लगाने या धारण करने के लाभ बताएं हैं। विज्ञान कहता है कि त्रिपुण्ड चंदन या भस्म से लगाया जाता है।

चंदन और भस्म माथे को शीतलता प्रदान करता है। अधिक मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है। ऐसे में त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है।

चौथा नियम

कलश/गड़ुवा/बाल्टी/लौटा सुंदर हों, फूटे न हों, सभी बराबर हों।

संख्या में 108 अथवा 28 अथवा 18 हों और अगर संभव न हो तो कम से कम 4 जरूर हों।

पांचवा नियम

सुनिश्चित कर ले पूजा का एक एक सामान व्यवस्थित तरीके से रखा है।

पूजा के समय व्याकुलता, क्रोध, जल्दबाजी, संदेह, सामान आदि ढूंढना या कोई भी अन्य विघ्न उचित नहीं।

छठा नियम

शिवलिङ्ग की पूजा में शिव पंचायतन की पूजा अनिवार्य है।

जा करना हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। पूजा व प्रार्थना करना ईश्वर को मनुष्य की ओर से दिया गया धन्यवाद है।

अक्सर देखने में आता है कि लोग अपने पूजागृहों में विभिन्न देवी-देवताओं के कई विग्रह (मूर्ति) का अम्बार लगाए रखते हैं,

हालांकि ये उनकी श्रद्धा का विषय है लेकिन हमारे शास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थ के लिए पांच देवों की पूजा का नियम बताया गया है।

जिसे ‘पंचायतन’ कहा जाता है।सनातन धर्म में “पंचायतन” पूजा श्रेष्ठ मानी गई है। ये पांच देव हैं- गणेश, शिव, विष्णु, दुर्गा (देवी) व सूर्य।

शास्त्रानुसार प्रत्येक गृहस्थ के पूजागृह में इन पांच देवों के विग्रह या प्रतिमा होना अनिवार्य है।

इन 5 देवों के विग्रहों को अपने ईष्ट देव के अनुसार सिंहासन में स्थापित करने का भी एक निश्चित क्रम है। आइए जानते हैं किस देव का पंचायतन सिंहासन में किस प्रकार रखा जाता है।

शिवलिङ्ग की पूजा में शिव पंचायतन की पूजा अनिवार्य है।

1. गणेश पंचायतन-यदि आपके ईष्ट गणेश हैं तो आप अपने पूजागृह में “गणेश पंचायतन” की स्थापना करें।

इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, मध्य में गणेश, नैर्ऋत्य कोण में सूर्य एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।


2. शिव पंचायतन-यदि आपके ईष्ट शिव हैं तो आप अपने पूजागृह में ‘शिव पंचायतन’ की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु,

आग्नेय कोण में सूर्य, मध्य में शिव, नैर्ऋत्य कोण में गणेश एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।3. विष्णु पंचायतन-यदि आपके ईष्ट विष्णु हैं

तो आप अपने पूजागृह में ‘विष्णु पंचायतन’ की स्थापना करें। इसके लिए

आप सिंहासन के ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, मध्य में विष्णु, नैर्ऋत्य कोण में सूर्य एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।

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4. दुर्गा (देवी) पंचायतन-यदि आपकी ईष्ट दुर्गा (देवी) हैं तो आप अपने पूजागृह में ‘देवी पंचायतन’ की स्थापना करें।

इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, मध्य में दुर्गा (देवी),

नैर्ऋत्य कोण में गणेश एवं वायव्य कोण में सूर्य विग्रह को स्थापित करें।

5. सूर्य पंचायतन-यदि आपके ईष्ट सूर्यदेव हैं तो आप

अपने पूजागृह में ‘सूर्य पंचायतन’ की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में शिव,

आग्नेय कोण में गणेश, मध्य में सूर्य, नैर्ऋत्य कोण में विष्णु एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।

सातवां नियम

अगर रात्रिकाल पूजा कर रहे हैं तो संभव हो सके तो उत्तराभिमुख होकर करें घर में नित्य ईश्वर का भजन-पूजन अवश्य होना चाहिए।

पूजन करने वाले सदैव पूर्वाभिमुख अथवा उत्तरा‍भिमुख होकर पूजन करें। घर में घी का दीपक अवश्य जलाएं।

Comments (6)

  1. Rajni

    Great content! Keep up the good work!

  2. Manohar

    Great product go for it

  3. jinwanda

    Good

  4. Piyali Chakraborty

    Best way thanks

  5. Natasha

    Nice jai Shiv SHankar

  6. Be beautiful enough

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